लेखनी कविता - दुनिया नई-पुरानी - बालस्वरूप राही
दुनिया नई-पुरानी / बालस्वरूप राही
दादी जो कहती है : दुनिया
पहले जैसी नहीं रही,
अब क्या मिलता है खाने को,
पहले तो थे दूध-दही।
लेकिन आइसक्रीम कहाँ थी
और कहाँ थी चुइंगगम?
टोस्ट और बिस्कुट खाते हम,
रोज उड़ाते चाय गरम।
बैठ बैलगाड़ी, ताँगे में
लोग पुराने जाते थे,
ढाई कोस पार करने में
ढाई रोज लगाते थे।
अब तो बैठ विमानों में हम
सैर विश्व की करते है,
बिना पंख के उड़ते हैं हम
मन हो जहाँ उतरते हैं।
पहले तो या गिल्ली-डंडा
था कि ताश की गड्डी थी,
टेनिस और क्रिकेट कहाँ थे?
कुश्ती और कबड्डी थी।
टेलीफोन दूर वालों से
बात करा देता फौरन,
टेलीविज़न करा देता है
जाने किन किन के दर्शन।
सच कहती है दादी अम्माँ
दुनिया सचमुच बदल गई,
इस बदली दुनिया में होती
हर दिन कोई बात नई।
सब को अपना समय सुहाता,
हम को यह युग भाता है,
नए-नए आविष्कारों से
रोज बदलता जाता है।